Class 9 Hindi Chapter 8 | मणि-कांचन संयोग Question Answer| SEBA

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आज, इस लेख में मैं आपके 9वीं कक्षा के मणि-कांचन संयोग के दीर्घ और लघु प्रश्नों पर चर्चा करूँगा हम लगभग सभी लंबे और छोटे प्रश्नों के समाधान प्रदान करते हैं।

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Class 9 Hindi Chapter 8 SEBA:

अभ्यासमाला

(अ) पूर्ण वाक्य में उत्तर दो :

1. धुवाहाटा-बेलगुरिनामक पवित्र स्थान कहा स्थित है?

उत्तर : माजुलि में |

2. शंकरदेव के साथ शास्तार्थ से पहले माधवदेव कौन थे ?

उत्रर : शाक्त |

3. सांसारिक जीवन में शंकरदेव और माधवदेव का कैसा संबंध था ?

उत्रर : मामा भांजे का |

4. शंकरदेव के मुँह से किस ग्रंथ का श्लीक सुनकर माधवदेव निरुत्तर हो गए थे ?

उत्रर : भागवत का |

5. किसने किससे कहा, बताओ :

क) माँ को शीघ्र सुस्थ कर दो ।

उत्तर :– श्रीमाधवदेव ने देवी गोसानी से कहा था

ख) बलि चढ़ाता बिनाशकारी कार्य है?

उत्तर : श्रीमाधवदेव की बहनोई रामदास ने माधवदेव से कहा था।

ग) अब तक मैंने कितने ही धर्मशास्तों का अध्ययन किया ।

उत्तर : श्रीमाधवदेव ने बहनोई रामदास से कहा था ।

घ) वे एक ही बात से तुम्हे निरुत्तर कर देंगे।

उत्तर :- बहनोई रामदास ने माधवदेव से कहा था ।

ङ) यह दीघल पुरीया गिरि का पुत्र माधव है।

उत्तर :- रामदास ने महापुरुष श्रीशंकरदेव से कहा था ।

सपूर्ण वाक्य में उत्तर दो:

क) विश्व का सबसे बड़ा नदी द्वीप माजुलि कहाँ बसा हुआ है ?

उत्तर : विश्व का सबसे बड़ा नदी द्वीप माजुलि महाबाहु ब्रह्मपुत्र की गोद में बसा है ।

ख) श्रीमंत शंकरदेव का जीबन काल किस ई. से किस ई. तक व्याप्त है?

उत्रर : श्रीमंत शंकरदेव का जीबन काल ई. 1449 से ई. 1568 तक व्याप्त है ।

ग) शंकर-माधव का मिलन असम भूमि के लिए कैसा साबित हुआ ?

उत्तर : शंकर-माधव का मिलन असम भूमि के लिए सोने में सुगंध जैसा साबित हुआ ।

घ) महाशक्ति का आगार ब्रह्मपुत्र क्या देखकर अत्यंत हर्षित ही उठा था ?

उत्तर : महाशक्ति का आगार ब्रह्मपुत्र अपनी गोद में मामा भांजे को गुरु शिष्य बनते देखकर अत्यंत हर्षित ही उठा था ?

ङ) माधवदेव को शिष्य के रूप में स्वीकार कर लेने के बाद शंकरदेव क्या बोले ?

उत्तर : माधवदेव की शिष्य के रूप में स्वीकार कर लेने के बाद शंकरदेव ने बोला कि उन्हें पाकर शंकरदेव पूरा हो गया ।

च) किस घटना से असम के सांस्कृतिक इतिहास में एक सुनहरे अध्याय का श्रीगणेश हुआ था ?

उत्तर : शंकर माधव की महामिलन की घटना से असम के सांस्कृतिक इतिहास में एक सुनहरे अध्याय का श्रीगणेश हुआ था ।

4. अति संक्षिप्त उत्तर दी (लगभग 25 शब्दों में):

क) ब्रह्मपुत्र नद किस प्रकार शंकरदेव-माधवदेव के महामिलन का साक्षी बना था ?

उत्तर :- महाशक्ति का आगार ब्रह्मपुत्र नद अपनी गोद में मामा-भाजें के गुरु शिश्य के संबंध मे बाधकर वे महामिलन की साक्षी बना; क्योंकि इसकी किनारे में ही ये दोनो महापुरुषों ने भागवती बैष्णव धर्म के बोज बोई थी ।

ख) धुवाहाटा-बेलगुरि सत्र में रहते समय श्रीमंत शंकरदेव किस महान प्रयास में जुटे हुए थे ?

उत्तर : धुवाहाटा-बेलगुरि सत्र में रहते समय श्रीमंत शंकरदेव शक्ति की उपासना तन्त्र-मन्त्र, बलि बिधान में जोड़े हुए असमीया समाज के सरलतम मार्ग ले चलने के महान प्रयास में जोड़े हुए थे ।

(ग) माधवदेव ने कब और क्या मनौती मानी थी?

उत्तर : एक बार माधवदेव की बिधवा माँ सखत बीमार पड़ा था । माँ के स्वास्थ्य ठीक होने के लिए बह देवी गोसानी से मनौती मानी थी एक जोड़ा सफेद बकरी भेंट करने की ।

घ) इसके लिए आवस्यक धन देकर माधवदेव व्यपार के लिए निकल पड़े। प्रस्तुत पँक्ति का संदर्भ स्पष्ट करो ।

उत्तर :- देवी गोसानी की मनौती के तैर पर देने वाले सफेद बकरी का एक जोड़ा खरीद कर रखने के लिए माधवदेव अपनी बहनोई रामदास से अनुरोध किया और इसके लिए आवश्यक धन देकर व्यापार करने निकले ।

ङ) माधवदेव आप से शास्तार्थ करने के लिए आया है । किसने किससे और किस परिस्थिति में ऐसा कहा था ?

उत्तर : यह कथन माधवदेव के बहनोई रामदास ने महापुरूष श्रीशंकरदेव से कहा था जब वह वलि विधान के विरुद्ध रामदास का कुछ भी बात मानने की तैयारन था । रामदास खुद हारकर, माधवदेव को शंकरदेव के पास ले आएँ थे ।

5) संक्षेप में उत्तर दो (लगभग 50 शब्दों में) :

क) शंकर माधव के महामिलन के संदर्भ में मणि कांचन संयोग आख्या की सार्थकता स्पष्ट करो ।

उत्तर :- शंकर-माधव के महामिलन के सन्दर्भ में मणिकांचन संयोग आख्याकी सार्थकता पूरी रुप से है । शंकर और माधव दोनों महापुरुषों ने सम्मिलित रूप से एक जुठ होकर भागवती वैष्यव-धर्म के प्रचार-प्रसार किया। अगर शंकर की मणि के उपमा से विभूषित किया जाता है तो माधव है उस मणि की सबारने वाला सोना ।

मणि और सोना (कांचन) एक साथ होकर ही एक दुसरे का सुन्दरता बढ़ता है, अकेले नही, जेसे शंकर-माधव दोनों की मिलन से असम भूमि के लिए सोने में सुगन्ध जैसा साबित हुआ। इसलिए शंकर माधव के महामिलन को मणि-कांचन संयोग उपमा से विभूषित किया जा सकता है ।)

ख) बहनोई रामदास के घर पहुँचने पर माधवदेव ने कया पाया और उन्होंने क्या किया ?

उत्तर :– बहनोई रामदास के घर पहुँचकर माधवदेव ने देखा की उसकी बीमार माँ देवी गोसानी की कृपा से स्वस्थ होने लगी थी, जिसे देखकर उसकी जान में जान गई । उन्होंने मन ही मन देवी माता की प्रणाम करके उनके प्रति अकृत्रिम कृतज्ञता प्रकट की और मनौती के अनुसार सफेद बकरी का जोड़ा खरीद कर रखने के लिए बहनोई रामदास से अनुरोध किया और उसके लिए आवस्यक धन दे कर वह व्यापार के लिए निकल पडे ।

ग) रामदास ने बलि-विधान के विरोध में माधवदेव से क्या क्या कहा ?

उत्तर :- गुरु शंकरदेव से मिली ज्ञान ज्योति के बलपर रामदास ने माधवदेव को बलि-बिधान के बिरोध मे बहुत समझाया था । वह समझाया था कि वलि चढ़ाना बिनाशकारी कार्य है । वेकार में किसी दूसरी जीव को हत्या करके कुछ भी प्राप्ति नही होता । उसके अनुसार इस लोक में बकरा काटनेवाले की उस लोक में बकरे हातों कटता पड़ता है ।

घ) शास्तार्थ के दौरान शंकरेदव द्वारा उद्धृत भागवत के श्लोक का अर्थ सरल हिन्दी में प्रस्तुत करो ।

उत्तर :- शास्तार्थ के दौरान शंकरेदव द्वारा निम्नलिखित भागवत का श्लोक उद्धृत किया है –

यथा तरोर्मूलनिषेचनेन तृण्यन्ति तत्सकंधधुजोपशाखा: ।

प्राणोपहाराच्च यथेन्द्रियणां तथैव सर्वार्चिनमच्युतेभ्य: ।।

इसका अर्थ है जिस प्रकार वृक्ष के मूल को सींचने से टहनियाँ, पत्ते, फूल, फल सव संजीवित होते हैं अथवा अन्न ग्रहण के जरिए प्राण का पोषण करने से मानव शरीर की सारी इंद्रियाँ संतुष्ट होती है, उसी प्रकार परमब्रह्म कृष्ण की उपासना करने से सारे देव देवता अपने आप संतुष्ट हो जाते हैं।

यथा तरोर्मूलनिषेचनेन तृण्यन्ति तत्सकंधधुजोपशाखा: ।

प्राणोपहाराच्च यथेन्द्रियणां तथैव सर्वाच्चिनमच्युतेभ्य: ।।

ङ) शंकरदेव की साहित्यिक देन के बारे में बताओ ।

उत्तर :- साहित्य की क्षेत्र में शंकरदेव का अवदान बहुत ही महत्वपूर्ण रहा है। 13 वर्ष की आयु से 35 वर्ष की आयु तक श्री शंकरदेव का महेन्द्र कंदली के विद्यालय में छात्रकाल रहा । इसी बीच इन्होंने सर्वप्रथम काव्यकृति हरिश्चन्द्र – उपाख्यान साहित्य जगत को भेंट की ।

हरिश्चन्द्र उपाख्यान के अतिरिक्त रुक्मिणी हरण, पारिजात हरण, राम विजय, छःअंकों का नाटके एवं वरगीत, भटिमा, गुणसाला, सदृश श्रष्ट रचनाए श्री शंकरदेव ने की हैं । इनकी सर्वोत्तम कृति है कीर्तनघोषा महाकाव्य ।

च) माधवदेव की साहित्यिक देन को स्पष्ट करो ।

उत्तर :- गुरु से असीम प्रेरणा पाकर श्रीश्री माधवदेव ने दी अपनी अनमोल देन से असमीया साहित्य के भंडार की रोशन कर दिया था उसके काव्य रचनाओं में नामघोषा, जन्मरहस्य, राजसुय, भक्ति रत्नावली, आदि बिशेष रूप से उल्लेखनीय है । उन्होंने चोर-धरा, पिंपरा गुचोवा, भोजन बिहार, भूमि-लेटोवा, दधि-मंथन आदि नाटक भी रचे हैं। गुरु की आज्ञा से उसने नौ कोड़ी ग्यारह बरगीत भी रचे, जिनमें से लगभग एक सौ इक्यासी बरगीत आज उपलब्ध है ।

सम्यक उत्तर दो (लगभग 100 शब्दों में):

क) माधवदेव की माँ की बीमारी के प्रसंग को सरल हिन्दी में वर्णना करो ।

उत्तर : माधवदेव जब अपनी सारी पैत्रिक संपत्ति बाडुका में बसे भाई को सौंपकर भांडारीडुबिकी और वापस आ रहे थे तो उनकी खबर मिली की उनके माँ सख्त बीमार है । भांडारीडुबि में बहन उर्वशी और बहनोई रामदास के पास रहनेवाली अपनी विधवा माँ के स्वास्थ्य को लेकर माधवदेव अत्यंत चिन्तित हो उठे और देवी गोसानी से तुरंत डावा की स्वास्थ्य के लिए मनौती मानकर एक सफेद बकरों का जीडा भेंट करने का अंगीकार किया।

बहनोई के घर पहुचने पर उन्होंने देखा कि देवी गोसानी की कृपा से उनकी माँ स्वस्थ होने लगी थीं। यह देखकर वह मन ही मन देवी माता की प्रणाम करके उनके प्रति भक्ति सहित आभारी प्रकट की। कुछ ही दिनों में उसकी माँ पूरी तरह स्वस्थ होगई और माधवदेव मनौती के अनुसार देवी गोसानी की चड़ाने वाली सफेद बकरों का एक जोड़ा खरीद रखने के लिए उन्होंने बहनोई रामदास को अनुरोध किया। ऐसी ही महान थी माधवदेव की मातृभक्ति।

ख) बलि हेतु बकरे खरीदने को लेकर रामदास और माधवदेव के बीच हुई बातचीत को अपने शब्दों में प्रस्तुत करो ।

उत्तर : देवी पूजा के दिन एकदम निक्ट आने पर मादवदेव ने बलि हेतु, बकरे खरीदने के लिए बहनोई रामदास को कहा । रामदास रोज बात की ढाल ढेते थे । एक दिन माधवदेव क्रोधित होकर रामदास से बकरी न खरीदने का कारण पूछा तो वह माधवदेव को समझाने लगा कि – बलि चढाना विनाशकारी कार्य है ।

उससे कुछ भी प्राप्ति नही होता है । बेकार में दूसरी जीव का हत्या करना पाप है । और तो और जौ जी इस लोक में बकरा काटता है, वह उस लोक में बकरे के हाथों काटा जाता है । लेकिन माधवदेव, रामदास की बातों से जरा भी प्रभावित नही हुए बरञ्च उनका ज्ञान-दंभ जाग उठा और वह बड़ी हदता से बहनोई की बात इनकार करवी बोला कि उसके द्वारा की मिली धर्मशास्त्रों का अध्ययन में उसकी बलि बिधान करने का निर्देश मिला है । समझा कर जब रामदास माधवदेव से ठक चुके थे तो वह उसकी गुरू शंकरदेव के पास ले आया शास्त्रार्थ करने के लिए।

ग) रामदास और माधवदेव गुरू शंकरदेव के पास कब और क्यों गए थे ?

उत्तर : रामदास जब माधवदेव को बलि बिधान के बिसोध मे समझा रहा था तो. माधवदेव उस बातो पर जरा भी प्रभावित नहीं हुआ बल्कि उनका ज्ञान दंभ जाग उठा। माधवदेव के झान दभ से रामदास थोड़ा आहत हुआ और उसके आँखे खोलने के लिए श्रीशंकरदेव का पास लाने का निर्णय करता है । और इस तरह रामदास और माधवदेव गुरु शकरदेव के पास आता है ।

घ) शंकरदेव और माधवदेव के बीच किस बात पर शष्त्रार्थ हुआ था ? उसका क्या परिणाम निकला ?

उत्तर : शंकरदेव और माधवदेव के बीच बलि बिधान की बात पर शास्त्रार्थ हुआथा । शंकरदेव निवृत्ति मार्ग के पक्ष में और माधवदेव प्रवृत्ति मार्ग के पक्ष में रहकर बिभिन्न शास्त्रों से प्रमाण प्रस्तुत करके एक दूसरे की बात ढालने लगी । उसका परिणाम यह हुआ कि माधवदेव ने कृष्ण-संबंधी ज्ञान भक्ति के दाता श्रीमंत शंकरदेव की गुरू मानकर गदगद चित्त से प्रणाम किया । शंकरदेव ने भी माधवदेव को शिष्य के रूप मे स्वीकार करके अपने पूर्णता प्राप्ति का आनन्दोल्लास मनाया और ओर चलकर एक दूसरे के पूरक बने ।

ङ) शंकर-माधव के महामिलन के शुभ परिणाम किन रूपों में निकले ?

उत्तर :- शंकर-माधव के महामिलन के शुभ परिणाम यह हुआ कि एकशरण नामधर्म का प्रचार-प्रसार तेजी से बढ़ता गया और कृष्ण-भक्ति की धाराएँ जन-मन को भिगोती हुई चारों दिशओं में बहने लगी। माधवदेव ने कृष्ण-भक्ति, गुरू-भक्ति और एकशरण नाम धर्म के प्रचार-प्रसार कार्य में अपने को पूरी तरह समर्पित में श्री माधवदेव का सहयोग पाने के पस्चात, श्रीमंत शंकरदेव अधिक उन्मुक्त भाव से साहित्य-सृष्टि, संगीत-रचना आदि के जरिए असमीया भाना साहित्य-संस्कृति को परिपूष्ट बनाने में सक्षम हुए।

प्रसंग सहित व्यारव्या करो (लगभग 100 शब्दों में) :

क) ऐसी परिस्थिति में योग्य गुरू शंकर की योग्य शिष्य साधव मिल गए।

उत्तर :

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्ति याँ हिँन्दी हमलोगों की हिन्दी पुस्तक आलोक १ के अंतर्गत डा: अच्युत शर्मा जी द्वारा रचित ‘मणि-कांचन संयोग’ पाठ से ली गई है ।

सन्दर्भ : इन पंक्तियों मे शंकर माधव के महामिलन के बारे में बताया गया है ।

व्याख्या : एकशरण भागवती वौष्णव धर्म के प्रवर्तक श्रीमंत शंकरदेव और परम भक्त माधवदेव का महामिलन मध्ययुगीन असम की एक सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटना है। उन दिनों शंकरदेव शक्ति की उपासना, तंत्र-मंत्र, बलि-बिधान एवं अनेकानेक कठोर धार्मिक बाह्याचासों से जकड़े हुए असमीया समाज को मुक्ति का नया पथ दिखाने तथा उसे आध्यात्मिक उन्नति के सरलतम मार्ग पर ले चलने के महान प्रयास में जुटे हुए थे ।

उपसंहार : ऐसी ही गंभीर परिस्थितियों में शीस्य गुरू शिष्य की मिलन ने असम भूमि में आशा के किरण लेकर आया ।

ख) उसने इस महामिलन के उमंग रस को बंगाल की खाड़ी से होकर हिन्द महासागर तक पहुँचाने के लिए अपनी लोहित जल-धारा को आदेश दिया था।

उत्तर :

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तिया हमलोगों की हिन्दी पुस्तक आलोक १ के अंतर्गत डा: अच्युत शर्मा जी द्वारा रचित ‘मणि-कांचन संयोग’ पाठ से ली गई है ।

सन्दर्भ : इन पंकतियों मे शंकर माधव के महामिलन के विषय पर ब्रहमपुत्र नद का आनन्दोल्लास के बारे में बताया है ।

व्याख्या : एकशरण भागवती वैष्णव धर्म के प्रवर्तक श्रीमंत शंकरदेव और परम शाक्त माधवदेव का महामिलन मध्ययुगीय काल में असम-भूमि में घटित एक अत्यन्त महत्वपूर्ण घटना है। ये दोनों महान गुरु के महामिलन से भारतवर्ष के इस पूर्वोत्तरो भूखंड में भागवती वैष्णव धर्म प्रचार-प्रसार कार्य में एक अदभुत गति आ गइ थी । सांसारिक जीवन में शंकर-माधव मामा भांजे थे, पर इस महामिलन के उपरांत दोनों गुरु शिष्य के पवित्र बंधन में बंध गए ते। इसका साक्षी बना था ब्रह्मा का वहदपुत्र असम का ब्रह्मपुत्र नद । महा शक्ति का आगार ब्रह्मपुत्र अपनी गोद से मामा-भांजे शिष्य बनते देखकर अत्यंत हर्षित हो उठा था।

उपसंहारः इस महामिलन के खबर पुरे भारतबर्ष मे पहुँचाने के लिए अपनी लोहित जलधारा को भेज दिया।

ग) उत्तर भारतीय समाज में रामचरितमानस का आदर जितना है, असमीया समाज में कीर्तनघोषा – नामघोषा का भी आदर उतना ही है ।

उत्तर :

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तिया हमलोगों का हिन्दी पुस्तक आलोक १ के अंतर्गत डा: अच्युत शर्मा जी द्वारा रचित ‘मणि-कांचन संयोग’ पाठ से ली गई है। सन्दर्भ: इन पंक्तियों मे शंकर माधव के महामिलन के विषय पर ब्रहमपुत्र नद का आनन्दोल्लास के बारे में बताया गया है।

व्याख्या : असमीया जाति शंकरगुरु और माधवगुरू दोनों की आभा से उद्भाषित है। दोनों गुरू की साहित्यिक जीवन की अमूल्य कृति कीर्तनघोषा और नामघोषा असमीया जाति का उनमोल समपद है। दो के दो पुस्तके असमीया संस्कृति के मार्ग दर्शक के रूप मे आगे चलकर हमलोगों को आध्यात्मिक उन्नति के सरलतम मार्ग पर ले चलते है। इसी से हमलोगो दोनों गुरू की उपस्थिति महसुस करते है । जिस तरह रामचरितमानस उत्तरी भारतीय समाज के लोगों के लिए पथ पदर्शक है। तुलसीदास रचित रामचरितमानस उत्तरी संस्कृति की आध्यात्मिक मार्ग दर्शक है।

उपसंहारः इसलिए यह रामचरित मानस का स्थान कीर्तनघोषा – नामघोषा को द त ।

भषा एव व्यकरण ज्ञ|ন :

क) निन्मलिखित अभिव्यक्तियों के लिए एक-एक शब्द दो :

विष्णु का उपासक, शक्ति का उपासक, शिव का उपासक, जिसकी कोई तुलना न हो, संस्कृति से संबंधित, बहन को पति, जिस स्त्री का पति मर गया है, ऐसा व्यक्ति जो शास्त्र जानता हो ।

उत्तर :-

1) बिष्णु का उपासक – बैष्णव ।

2) शाक्ति का उपासक – शाक्त ।

3) शिव का उपासक – शैव ।

4) जिसकी कोई तुलना न हो- अतुलनीय ।

5) संस्कृति से संबंधित- सांस्कृतिक ।

6) बहन के पति – बहनोई ।

7) जिस स्त्री का पति मर गया हो- विधवा ।

8) ऐसा व्यक्ति, जी शास्त्र जानता हो – शास्त्रज्ञ ।

(ख) निन्मांकित शब्दों से प्रत्ययों को अलग करो :

मनौती, वार्षिक, कदाचित, बुढ़ापा, पूर्वोत्तरी, आध्यात्मिक, आधारित ।

उत्तर :

1) मनौती = औती

2) पूर्वोत्तरी = ई ।

3) वार्षिक = इक

4 )आध्यात्मिक = इक

5) कदाचित = इत |

6) बुढ़ापा = पा

7) आधारित = इत |

ख) निन्म लिखित शब्दों का प्रयोग बाक्य में इस प्रकार करो, ताकि उनका लिंग स्पष्ट हो :

महामिलन, उपासना, बढ़ोत्तरी, मोल भाव, विनती, वाणी, तिरोभाव, संस्कृति ।

उत्तर :

1) महामिलन :- प्राचीन काल से भारतबर्ष को विभिन्न जातियों के महामिलन का तीर्थ माना जाता है।

2) उपासना : बिष्णु की उपासना करने से सब देव देवी संतुष्त हो जाती है।

3) बढ़ोत्तरी : हमलोगों की अपने देश की बढ़ोत्तरी के लिए सहायता करनी चाहिए।

4) मोल-भाव : मोल-भाव करते समय ग्राहक की सचेत रहना चाहिए।

निष्कर्ष:

हमारा मानना ​​है कि ये नोट्स शिक्षार्थियों को विषयों की बेहतर समझ विकसित करने और उनकी परीक्षा के लिए आत्मविश्वास बढ़ाने में मदद करेंगे।

हमें विश्वास है कि ये नोट्स शिक्षार्थियों को उनके लक्ष्यों को प्राप्त करने और उनके अकादमिक प्रदर्शन को बढ़ाने में मदद करेंगे। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा हो और मददगार लगा हो तो कृपया इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करें।

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